Sunday 26 August 2012

koi dost hai na rakib hai

कोई दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है ,
यहाँ किससे कहू तू साथ चल यहाँ सब का होना फरेब है !
वो जो इश्क था वो नूर था यह जो हिज्र है नसीब  है ,
कोई दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है!
क्या  तुफेल है क्या शोर है ये दौर भी क्या दौर है,
 कल तलक तहजीब का समंदर था आज खून तर जमीं है !
कोई दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है
कोई दोस्त है न रकीब है तेरा शहर कितना अजीब है!