Wednesday 26 September 2012


मैं अक्स हु तेरे वजूद का तेरी सासे बाया करती है
तू जो दूर  बैठा है मुझसे तेरी आखे बाया करती है
तेरी चाहत तेरी बाते तेरे होने की आहट बाया करती है
तेरी खुशबु से महक जाये जिस्म मेरा मेरे एस जहा में होने की हकीकत बया करती है ........


आज शायद  सारी रस्मे तोड़ दू ,
आज शायद दुनिया से मुह मोड़ लू !
लग जाओ गले आपके सारी हया  छोड़ दू ,
आज शायद हर बंदिश तोड़ दू !
नहीं जानती क्यों डरती हु दूर जाने से आपके ,
पर कर सकू बगावत तो किस्मत का रुख मोड़ दू !
सुकून मिलता है आगोश में आपके ,
आज शायद हर गम से नाता तोड़ दू !

आ जाओ , बस आ जाओ कभी न रूठने के लिए
कभी न छुटने के लिए बस आ जाओ !

आज फिर एक धोखा खाया
आज फिर उसका नया चेहरा नजर आया '
क्यों है नहीं मुझे पहचान उसकी आज फिर वो एक मुखोटा ओढ़ लाया
है कितने  रूप उसके जानती नहीं
पर लगता है हर तरफ उसका साया
जानती हू टूटा है भरोसा मेरा
पर आज फिर एक सबक पाया है


उस बेरुखी की थी वजह भी न मालोम थी हमें
 जिसे उन्होंने दिल से लगा रखा था
रिश्ते का जनाजा उठ गया खामोसी से
और हम मातम तक न मन सके


अपने ख्यालो को एक रूप देना कहती हू
एक बार वो हसीं लम्हा जीना चाहती हू
फिर से कदमो के ताल पे उड़ना चाहती हू
एक वायदा फिर खुद से करना चाहती हू
और फिर उस वायदे को पूरा  करना चाहती हू
एक बार फिर से जीना चाहती हू



वो कहते थे न छोड़ेंगे साथ तुम्हारा
दो कदम भी साथ न चल सके तो हम क्या करे !
हम तो चले थे उन्हें दोस्त बनाने
वो साथी (राह का साथी) भी न बन सके तो हम क्या करे !
चाहत ही पूजा थी मेरी और कुछ मागा भी तो न था
वो ही  न समहज पाए हमें तो खता हमारी कहा थी ?


अब तो घबरा कर ये कहते है की मर जायेंगे ,
पर मर कर भी न लगा मन तो किधर जायेंगे !
हम वो नहीं जो इल्जाम दे उन पर ,
पूछेगा भी कोई तो मुकर जायेंगे !
इस जहा में बहुत होंगे जख्मो पर मरहम लगाने वाले ,
पर मेरे जखम ऐसे नहीं जो भर जायेंगे


याद किया है तुम्हे तन्हाई के उन लम्हों में ,
जब कोई पास नहीं था मेरे !

तुमने एक बार मिलना जरुरी न समझा , 
और आवाज में थी खामोसी मेरे !

तरसती रही भरोसे के लिए तुम्हारे ,
और फुर्सत नहीं थी तुम्हे सिकयातो  से मेरे ! 

कमी कही थी शायद मुझमे ,
और पूरे थे तुम  एतबार के लिए मेरे ! 

किस बात का गुरुर तुम्हे जानती नहीं ,
और इंतजार में बैठी रही हर पल तेरे !

जब कभी सोचती हू फुर्सत के लम्हों में तुम्हे ,
समहज में नहीं आता क्या है जहेन में मेरे !

रोटी हू जलील महसूस करती हू  खुदमे ,
और सुन्न पद जाते है अल्फाज मेरे !

अगर नाम इसी का है मोहब्बत तो दुआ करुँगी ,
न मिले इसी मोहब्बत दुश्मन को भी मेरे.....................!