याद किया है तुम्हे तन्हाई के उन लम्हों में ,
जब कोई पास नहीं था मेरे !
तुमने एक बार मिलना जरुरी न समझा ,
और आवाज में थी खामोसी मेरे !
तरसती रही भरोसे के लिए तुम्हारे ,
और फुर्सत नहीं थी तुम्हे सिकयातो से मेरे !
कमी कही थी शायद मुझमे ,
और पूरे थे तुम एतबार के लिए मेरे !
किस बात का गुरुर तुम्हे जानती नहीं ,
और इंतजार में बैठी रही हर पल तेरे !
जब कभी सोचती हू फुर्सत के लम्हों में तुम्हे ,
समहज में नहीं आता क्या है जहेन में मेरे !
रोटी हू जलील महसूस करती हू खुदमे ,
और सुन्न पद जाते है अल्फाज मेरे !
अगर नाम इसी का है मोहब्बत तो दुआ करुँगी ,
न मिले इसी मोहब्बत दुश्मन को भी मेरे.....................!
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