Wednesday 3 October 2012

आज उनसे फिर बात हुई,
वही नाराजगी वही, वही खुराफात हुई !
नादाँ हु मैं जानती हु,
पर जानना चाहती हु उन्हें  बस यही बात हुई !
आतीत था कोई साथ उनके शायद यही डर सताता है उन्हें ,
यकीं मानिये हमें वास्ता नहीं आतीत से बस यही दरखवास्त हुई !
हर रिश्ता पाक है नजरो में हमारी ,
अब यही से  नयी शुरूवात हुई !
अर्श से फर्श तक बखरे है शब्द उनके 
अब बस यही हमारी कायनात हुई !
वो जो आदत थी कभी उनके साथ ,
आज हम है तो बस आज हमारे साथ ये वारदात हुई !



                                                                                                                           kavita ki kavita se

No comments:

Post a Comment